हमने ही बदले है अपने सारे सामाजिक मापदण्ड।
असीमित धन की लालसा की लपटे हो रही है प्रचंड।
नाम और सम्मान दोनों को ही धन से जोड़ दिया है।
धनी बनो येनकेन सबको स्वतन्त्र छोड़ दिया है।
जीविकोपार्जन उपरांत मानव चाहता है सम्मान सुख।
इसीके लिए वो हो रहा है आज सब सिध्दांतो से विमुख।
धन के लिए आज सभी सिध्दान्तो का अंत हो रहा है।
सिध्दान्तवादी तो आज गुमनामी के अंधेरो में खो रहा है।
सिध्दान्ताचरण तो गुमनामी और दुत्कार दिला रहा है।
ऐसे भ्रष्टाचरण की घुट्टी तो समाज ही पिला रहा है।
भ्रष्टतम लोगो का सार्वजनिक सम्मान हम कर रहे है
ऐसे लोगों से अपने सम्बन्धो की आज डींगे भर रहे है।
सिर्फ धनबल से ही आज सम्मान सुख मिल रहा है।
इसीलिये आज भ्रष्टाचार का नित नया फूल खिल रहा है।
दल संसद तक में भेज रहे अभिनय ही जिनका धंधा है।
या फिर उसको भेज रहे जो दे सकता ज्यादा चन्दा है।
सोचो ऐसे में भी फिर क्यों कोई ये सदाचार अपनाएगा।
हर होशियार तो कैसे भी सम्मान की जुगत लगाएगा।
कानून तो हमारा सदा से ही सिर्फ शासन का हथियार है।
वो हथियार चले कैसे अब जब शासक ही भ्रष्टाचार है।
भ्रष्टाचार की विजय के भी उत्तरदायी हम और आप है।
क्योंकि सामाजिक उपेक्षा कानूनी दण्डो का भी बाप है।
पर उसका सहारा हम आज जरा भी नहीं ले पा रहे है।
भ्रष्टाचार को कोसते भ्रष्टाचारियो को पलके बिछा रहे है।
असीमित धन की लालसा की लपटे हो रही है प्रचंड।
नाम और सम्मान दोनों को ही धन से जोड़ दिया है।
धनी बनो येनकेन सबको स्वतन्त्र छोड़ दिया है।
जीविकोपार्जन उपरांत मानव चाहता है सम्मान सुख।
इसीके लिए वो हो रहा है आज सब सिध्दांतो से विमुख।
धन के लिए आज सभी सिध्दान्तो का अंत हो रहा है।
सिध्दान्तवादी तो आज गुमनामी के अंधेरो में खो रहा है।
सिध्दान्ताचरण तो गुमनामी और दुत्कार दिला रहा है।
ऐसे भ्रष्टाचरण की घुट्टी तो समाज ही पिला रहा है।
भ्रष्टतम लोगो का सार्वजनिक सम्मान हम कर रहे है
ऐसे लोगों से अपने सम्बन्धो की आज डींगे भर रहे है।
सिर्फ धनबल से ही आज सम्मान सुख मिल रहा है।
इसीलिये आज भ्रष्टाचार का नित नया फूल खिल रहा है।
दल संसद तक में भेज रहे अभिनय ही जिनका धंधा है।
या फिर उसको भेज रहे जो दे सकता ज्यादा चन्दा है।
सोचो ऐसे में भी फिर क्यों कोई ये सदाचार अपनाएगा।
हर होशियार तो कैसे भी सम्मान की जुगत लगाएगा।
कानून तो हमारा सदा से ही सिर्फ शासन का हथियार है।
वो हथियार चले कैसे अब जब शासक ही भ्रष्टाचार है।
भ्रष्टाचार की विजय के भी उत्तरदायी हम और आप है।
क्योंकि सामाजिक उपेक्षा कानूनी दण्डो का भी बाप है।
पर उसका सहारा हम आज जरा भी नहीं ले पा रहे है।
भ्रष्टाचार को कोसते भ्रष्टाचारियो को पलके बिछा रहे है।
7 comments:
उम्दा पोस्ट के लिए बधाई |
आशा
padane ke liye dhanyabaad.
एक
गंभीर प्रस्तुति
dhanyabad ji
bahut sundar rachana hai aapki,
aapne bharat me ho rahe bhrastachar ka sajiv chitran kiya hai,meri hardik shubha kamanaye aapko
बहुत सुंदर ...
बहुत खूब ,उम्दा पोस्ट के लिए बधाई |
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