गूँज रहा है वाक्य आज ये, दोषी है कौन ?
सभी अनसुना इसे कर रहे,रह कर मौन।
मौन रहना भी तो,अपने आप में एक दोष है।
दोषी है हर शख्स यंहा, इतने पर भी खामोश है।
नेता,अधिकारी,व्यवसायी,मजदूर और किसान।
पत्रकार,शिक्षक ही क्या आज सभी आम इन्सान।
मौन परस्ती धारण करके सभी कर रहे भ्रष्टाचार।
दफनाकर कर्तव्यबोध को जीवन बना रहे व्यापार।
ख़ामोशी का भी होता अपना ही गुप्त एक कारण है।
आदिकाल से दोषी करता आया ही मौन धारण है।
मात्र रुपये का लेनदेन ही नहीं होता है भ्रष्टाचार।
नैतिक पथ से भ्रमित आचरण का बेटा है भ्रष्टाचार।
अपनी सुविधा की खातिर हर व्यक्ति पंक्ति है तोड़ रहा।
अन्य अपेक्षा ही क्या?पारिवारिक कर्तव्य ही है छोड़ रहा।
छोटी छोटी कडियों से ही जैसे बन जाती है जंजीर।
कर्तव्य हीन होने से ही,है बिगड़ी सामाजिक तश्वीर.
जितना मौका मिलता है,वो उतनी सुविधा ले रहा है।
इस तश्वीर का दोषी कौन? जबाब कोई नहीं दे रहा है।
सभी अनसुना इसे कर रहे,रह कर मौन।
मौन रहना भी तो,अपने आप में एक दोष है।
दोषी है हर शख्स यंहा, इतने पर भी खामोश है।
नेता,अधिकारी,व्यवसायी,मजदूर और किसान।
पत्रकार,शिक्षक ही क्या आज सभी आम इन्सान।
मौन परस्ती धारण करके सभी कर रहे भ्रष्टाचार।
दफनाकर कर्तव्यबोध को जीवन बना रहे व्यापार।
ख़ामोशी का भी होता अपना ही गुप्त एक कारण है।
आदिकाल से दोषी करता आया ही मौन धारण है।
मात्र रुपये का लेनदेन ही नहीं होता है भ्रष्टाचार।
नैतिक पथ से भ्रमित आचरण का बेटा है भ्रष्टाचार।
अपनी सुविधा की खातिर हर व्यक्ति पंक्ति है तोड़ रहा।
अन्य अपेक्षा ही क्या?पारिवारिक कर्तव्य ही है छोड़ रहा।
छोटी छोटी कडियों से ही जैसे बन जाती है जंजीर।
कर्तव्य हीन होने से ही,है बिगड़ी सामाजिक तश्वीर.
जितना मौका मिलता है,वो उतनी सुविधा ले रहा है।
इस तश्वीर का दोषी कौन? जबाब कोई नहीं दे रहा है।
4 comments:
सुन्दर रचना , बहुत सही सवाल उठाये हैं आपने
ख़ामोशी का भी होता अपना ही गुप्त एक कारण है। आदिकाल से दोषी करता आया ही मौन धारण है। ... बहुत सुन्दर व सार्थक पंक्तियाँ कही हैं आपने ..आपकी इस उत्कृष्ट रचना की चर्चा कल 20/10/2013, रविवार ‘ब्लॉग प्रसारण’ http://blogprasaran.blogspot.in/ पर भी ... कृपया पधारें ..
कविता के माध्यम से कुछ प्रश्न उत्तर की प्रतीक्षा में |
नई पोस्ट महिषासुर बध (भाग तीन)
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