Monday 8 July 2013

हमारा गिरेबां

हमने ही बदले है अपने सारे सामाजिक मापदण्ड।
असीमित धन की लालसा की लपटे हो रही है प्रचंड।
नाम और सम्मान दोनों को ही धन से जोड़ दिया है।
धनी बनो येनकेन सबको स्वतन्त्र छोड़ दिया है।
जीविकोपार्जन उपरांत मानव चाहता है सम्मान सुख।
इसीके लिए वो हो रहा है आज सब सिध्दांतो से विमुख।
 धन के लिए आज सभी सिध्दान्तो का अंत हो रहा है।
सिध्दान्तवादी तो आज गुमनामी के अंधेरो में खो रहा है।
सिध्दान्ताचरण तो गुमनामी और दुत्कार दिला रहा है।
ऐसे भ्रष्टाचरण की घुट्टी तो समाज ही पिला रहा है।
भ्रष्टतम लोगो का सार्वजनिक सम्मान हम कर रहे है
ऐसे लोगों से अपने सम्बन्धो की आज डींगे भर रहे है।
सिर्फ धनबल से ही आज सम्मान सुख मिल रहा है।
इसीलिये आज भ्रष्टाचार का नित नया फूल खिल रहा है।
दल संसद तक में भेज रहे अभिनय ही जिनका धंधा है।
या फिर उसको भेज रहे जो दे सकता ज्यादा चन्दा है।
सोचो ऐसे में भी फिर क्यों कोई ये सदाचार अपनाएगा।
हर होशियार तो कैसे भी सम्मान की जुगत लगाएगा।
 कानून तो हमारा सदा से ही सिर्फ शासन का हथियार है।
वो हथियार चले कैसे अब जब शासक ही भ्रष्टाचार है।
भ्रष्टाचार की विजय के भी उत्तरदायी हम और आप है।
क्योंकि सामाजिक उपेक्षा कानूनी दण्डो का भी बाप है।
पर उसका सहारा हम आज जरा भी नहीं ले पा रहे है।
भ्रष्टाचार को कोसते भ्रष्टाचारियो को पलके बिछा रहे है।

7 comments:

Asha Lata Saxena said...

उम्दा पोस्ट के लिए बधाई |
आशा

Unknown said...

padane ke liye dhanyabaad.

अज़ीज़ जौनपुरी said...

एक
गंभीर प्रस्तुति

Unknown said...

dhanyabad ji

Mohan Srivastav poet said...

bahut sundar rachana hai aapki,

aapne bharat me ho rahe bhrastachar ka sajiv chitran kiya hai,meri hardik shubha kamanaye aapko

nayee dunia said...

बहुत सुंदर ...

Madan Mohan Saxena said...

बहुत खूब ,उम्दा पोस्ट के लिए बधाई |