उत्तराँचल की उथल-पुथल या हो समुद्र की सुनामी।
जिम्मेदार स्वयं हम हैं दें वेशक ही शिव को बदनामी।
समदर्शी शिवजी है अनंत किसी पर अन्याय नहीं सहते।
जैसा करोगे वैसा भरोगे वो नहीं किसी की भी हैं कहते।
अपनी वैज्ञानिक उन्नति की खोखली गलतफहमी से।
उजाड़ रहे हैं आज प्रकृति को देखो कितनी बेरहमी से।
कर-कर खोखली धरती माँ को केंद्र बिंदु हैं बिगाड़ रहे।
आत्म मुग्ध होकर हम मन में उन्नति के झंडे गाड़ रहे।
प्रकृति को कर तहस-नहस हम खुद को चैन चाहते हैं।
बैर जिससे हम ईजाद करे उसी से सुरक्षा लेन चाहते हैं।
यंहा कूटनीति नहीं चल सकती कितने भी होजायें उन्नत।
उजाड़ प्रकृति को बेरहमी से घर को बेशक बनाये जन्नत।
सारी वैज्ञानिक क्षमता को पल भर की प्रलय मिटा देगी।
मदहोश मानव को तो प्रकृति पलभर में ही धूल चटा देगी।
अन्न के साथ घुन पिसने की तो एक पुरानी ही कहावत है।
कुकर्मी तो सिर्फ मानव है पर अन्य जीवो की भी आफत है।
पर आधुनिक उन्नत मानव को जीवो से क्या लेनादेना है।
उसके लिए सम्पूर्ण प्रकृति ही आज तो मात्र खिलौना है।
भौतिकता में लीन उसे नहीं कोई भी उपदेश सुहाता है।
सुविधा हेतु माँ बाप को भी व्रद्धास्रम छोड़ जो आता है।
मदहोश मानव के इस आचरण का एक ही परिणाम है।
आज नहीं तो कल सही होना निश्चित ही काम तमाम है।
जिम्मेदार स्वयं हम हैं दें वेशक ही शिव को बदनामी।
समदर्शी शिवजी है अनंत किसी पर अन्याय नहीं सहते।
जैसा करोगे वैसा भरोगे वो नहीं किसी की भी हैं कहते।
अपनी वैज्ञानिक उन्नति की खोखली गलतफहमी से।
उजाड़ रहे हैं आज प्रकृति को देखो कितनी बेरहमी से।
कर-कर खोखली धरती माँ को केंद्र बिंदु हैं बिगाड़ रहे।
आत्म मुग्ध होकर हम मन में उन्नति के झंडे गाड़ रहे।
प्रकृति को कर तहस-नहस हम खुद को चैन चाहते हैं।
बैर जिससे हम ईजाद करे उसी से सुरक्षा लेन चाहते हैं।
यंहा कूटनीति नहीं चल सकती कितने भी होजायें उन्नत।
उजाड़ प्रकृति को बेरहमी से घर को बेशक बनाये जन्नत।
सारी वैज्ञानिक क्षमता को पल भर की प्रलय मिटा देगी।
मदहोश मानव को तो प्रकृति पलभर में ही धूल चटा देगी।
अन्न के साथ घुन पिसने की तो एक पुरानी ही कहावत है।
कुकर्मी तो सिर्फ मानव है पर अन्य जीवो की भी आफत है।
पर आधुनिक उन्नत मानव को जीवो से क्या लेनादेना है।
उसके लिए सम्पूर्ण प्रकृति ही आज तो मात्र खिलौना है।
भौतिकता में लीन उसे नहीं कोई भी उपदेश सुहाता है।
सुविधा हेतु माँ बाप को भी व्रद्धास्रम छोड़ जो आता है।
मदहोश मानव के इस आचरण का एक ही परिणाम है।
आज नहीं तो कल सही होना निश्चित ही काम तमाम है।
3 comments:
सुन्दर प्रस्तुति . बहुत ही अच्छा लिखा आपने .
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बहुत सटीक प्रस्तुति...
हम नहीं चेते तो अंजाम भयंकर ही होगा....
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