काम,क्रोध,मद,लोभ,मन।
तहस नहस कर देते जीवन।
जिनमे काम का स्थान पहला।
जो विवेक को भी लेता बहला।
सफल इसपर सिर्फ अंकुश एक।
अगर लगी हो संस्कारो की टेक।
वो भी संस्कार हो सब स्तर के। आध्यात्म,लोक,समाज अरु घरके।
घर के संस्कार थे रिश्ते बतलाते।
निर्वहन उनका थे समाज कराते।
मानस में अंकित रहते थे रिश्ते।
रक्षक जिनके आध्यात्मक फ़रिश्ते।
हर स्त्री पुरुष से था एक नाता।
जो मर्यादा की था याद दिलाता।
पाप का भय था इस पर भारी।
सिर्फ पत्नी होती थी एक नारी।
संस्कारो के स्तर ही टूट रहे है।
संस्कार तो पीछे ही छूट रहे है।
आध्यात्म के डंडे भी टूट रहे है।
चुपके उजागर अस्मत भी लूट रहे है।
मनोवेगों का राजा उन्मुक्त हो रहा है।
अँधा काम विवेक पर हावी हो रहा है।
तभी तो मानव धर्म भी खो रहा है।
लगता है मानव फिर जंगली हो रहा है।
तहस नहस कर देते जीवन।
जिनमे काम का स्थान पहला।
जो विवेक को भी लेता बहला।
सफल इसपर सिर्फ अंकुश एक।
अगर लगी हो संस्कारो की टेक।
वो भी संस्कार हो सब स्तर के। आध्यात्म,लोक,समाज अरु घरके।
घर के संस्कार थे रिश्ते बतलाते।
निर्वहन उनका थे समाज कराते।
मानस में अंकित रहते थे रिश्ते।
रक्षक जिनके आध्यात्मक फ़रिश्ते।
हर स्त्री पुरुष से था एक नाता।
जो मर्यादा की था याद दिलाता।
पाप का भय था इस पर भारी।
सिर्फ पत्नी होती थी एक नारी।
संस्कारो के स्तर ही टूट रहे है।
संस्कार तो पीछे ही छूट रहे है।
आध्यात्म के डंडे भी टूट रहे है।
चुपके उजागर अस्मत भी लूट रहे है।
मनोवेगों का राजा उन्मुक्त हो रहा है।
अँधा काम विवेक पर हावी हो रहा है।
तभी तो मानव धर्म भी खो रहा है।
लगता है मानव फिर जंगली हो रहा है।
3 comments:
sundar vichar, hamare kadam jangal ki taraf hi badhte ja rahe hain
वाकई में संस्कार तो खत्म होते जा रहे हैं...
To jangal ki taraf hi ja rahe hai
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