निःस्वार्थ प्रेम ही है जीवन का आधार, जो है सिर्फ ममत्व में कर देखा खूब विचार। कर देखा खूब विचार अन्य भी रिश्तों में, माँ जैसा नहीं है प्यार किन्ही भी फरिश्तों में। माँ का प्रेम ही नवजात का भोजन होता है। जिसके लिए जन्मते ही नवजात रोता है। हर प्राकृतिक माँ नवजात पर छिड़कती है जान भी। अनगिनत माताएं नवजात पर दे चुकी है प्राण भी। माँ को छोड़ अन्य रिश्ते तो सिर्फ, मानव जगत को ही सजाते है। माँ का रिश्ता है सम्पूर्ण प्रकृति में, अन्य रिश्ते नहीं पाए जाते है। माँ के अलावा इक अन्य भी रिश्ता है, जो पशु पक्षियों में भी पाया जाता है। मानव समांज में वो रिश्ता, मित्रता कहलाता है। मगर मित्र इस दुनिया में, हर जीवधारी को नहीं मिलते। मिलता है सच्चा मित्र तभी, जब भाग्य के पट है खुलते। माँ और सच्चे मित्र के ही, रिश्ते है सच्चे प्रेम की खान। जो अपने रिश्ते की खातिर, ले और दे भी सकते है जान। मगर मानव समाज में आज, इन रिश्तो में भी अपवाद हो रहे है। किराये की कोख से भी, नवजात आज पैदा हो रहे है। मित्रता भी समाज से अब, नदारद होती जा रही है, मानव समाज को तो सिर्फ, भौतिकता ही लुभा रही है। शुक्र है पशु पक्षियों में तो, ये रिश्ते अभी भी जिन्दा है। पशु पक्षी बन गए मानव, पर हम न बन सके परिंदा है।
2 comments:
सार्थक और सटीक जानकारी
जीवन जीने का सार
बधाई
रिश्तों में विश्वास ......बहुत खूब
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