जन्मा था अध्यात्म जहाँ,वहां भौतिकवाद का राज है।
अब तो बेमतलब का लगता,जगत गुरु का ताज है।
अनुजबधू,भगिनी,सुतनारी,समान थी हर कन्या जहाँ।
एक नारिव्रत धर्म था,जिनका संस्कार वो गए कहाँ।
निजभार्या को छोड़ यहाँ,हर नारी से तब रिश्ता था।
अनजाने भी माता,बहन,के संबोधन का रिश्ता था।
कई विदेशी यहाँ पर आये,और रहकर यंहा से चले गए
संस्कार तब नहीं टूटे,जाने कितने भी उत्पात भये।
मगर आज हम आधुनिकता की चादर को जो ओढ़ रहे।
अपने सारे संस्कारो को,दकियानूसी कह छोड़ रहे।
भौतिकबाद की अंधी दौड़ में,हम हर मर्यादा तोड़ रहे।
अध्यात्मगुरु भारत को,पतन की राह पर मोड़ रहे.
आगे बढ़ती हुई नारी यंहा,अपना सम्मान खो रही है।
उन्नति के साथ,मासूम बच्चियों की दुर्गति हो रही है।
कन्या भ्रूण हत्या आधुनिक जागरूकता बन गई है।
लगता है उन्नत नारी की तो, ममता ही छीन ली गई है।
संबंधो में साथ रहने को भी,जायज हम ठहरा रहे है।
पूज्य भारती नारी को,उन्नति का मीठाजहर पिला रहेहै।
अब वापरो अरु फेंक दो,के संस्कार त़ो हम ला ही रहे है।
सही अर्थो में नारी को,उपभोग की ही बस्तु बना रहे है।
अब तो बेमतलब का लगता,जगत गुरु का ताज है।
अनुजबधू,भगिनी,सुतनारी,समान थी हर कन्या जहाँ।
एक नारिव्रत धर्म था,जिनका संस्कार वो गए कहाँ।
निजभार्या को छोड़ यहाँ,हर नारी से तब रिश्ता था।
अनजाने भी माता,बहन,के संबोधन का रिश्ता था।
कई विदेशी यहाँ पर आये,और रहकर यंहा से चले गए
संस्कार तब नहीं टूटे,जाने कितने भी उत्पात भये।
मगर आज हम आधुनिकता की चादर को जो ओढ़ रहे।
अपने सारे संस्कारो को,दकियानूसी कह छोड़ रहे।
भौतिकबाद की अंधी दौड़ में,हम हर मर्यादा तोड़ रहे।
अध्यात्मगुरु भारत को,पतन की राह पर मोड़ रहे.
आगे बढ़ती हुई नारी यंहा,अपना सम्मान खो रही है।
उन्नति के साथ,मासूम बच्चियों की दुर्गति हो रही है।
कन्या भ्रूण हत्या आधुनिक जागरूकता बन गई है।
लगता है उन्नत नारी की तो, ममता ही छीन ली गई है।
संबंधो में साथ रहने को भी,जायज हम ठहरा रहे है।
पूज्य भारती नारी को,उन्नति का मीठाजहर पिला रहेहै।
अब वापरो अरु फेंक दो,के संस्कार त़ो हम ला ही रहे है।
सही अर्थो में नारी को,उपभोग की ही बस्तु बना रहे है।
9 comments:
behatareen prastuti, sundar nazariya
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है किआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच चौराहे पर खड़ा हमारा समाज ( चर्चा - 1225 ) में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
क्षमा करें... पिछली टिप्पणी में दिन गलत हो गया था..!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार के चर्चा मंच चौराहे पर खड़ा हमारा समाज ( चर्चा - 1225 ) में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
dhanyabad bhai.
dhanyabad shashtri ji.
dhanyabad sugya sahab.
भौतिकबाद की अंधी दौड़ में,हम हर मर्यादा तोड़ रहे। अध्यात्मगुरु भारत को,पतन की राह पर मोड़ रहे। आगे बढ़ती हुई नारी यंहा,अपना सम्मान खो रही है। उन्नति के साथ,मासूम बच्चियों की दुर्गति हो रही है।
..जाने कौन से प्रगति के ओर बढ़ रहे हैं हम ?
गहन चिंतन से भरी प्रस्तुति हेतु धन्यवाद..
chintan ko smajhane ka dhanyabad kavitaji
Post a Comment