जिज्ञाशा है संस्कार और कानून में, क्या है? ज्यादा कारगर। कानून तो बदल भी जाता है,संस्कार तो रहते है जीवन भर। कानून को गवाह,सबूत चाहिए,जो यदा कदा ही मिलपाते है। संस्कार निहायत एकान्त में भी कारगर पाबन्दी लगाते है। कानून तोड़कर तोड़ने वाले,बड़ी आसानी पूर्वक बच जाते है। मगर संस्कार टूट जाने पर हम ताउम्र मनमे ही पछताते है। कानूनन निषिद्ध हर काम को,जानेमे बेख़ौफ़ हम कर जाते है। संस्कार निषिद्ध पीपल वृक्ष को,आज भी हम काट नहीं पाते है। संस्कार टूटने पर संस्कारित,खुद ही मनमे दण्डित हो जाता है। साक्ष्याभाव में विमुक्त खूनी,कानूनन निर्दोष कहलाता है। संस्कारित ईमानदार नहीं खा सकता किसी अमानत को। कानूनन घोटाले हो जाते, ठेंगा दिखाकर क़ानूनी जमानत को। फिर भी हम अप्रत्यक्षतः,कानून से संस्कारो को क्यों दबा रहे है। संस्कारो के विरुद्ध सैमलेंगिक संबंधो को कानूनन सही बता रहे है।
2 comments:
Where desires for wealth, women and fame becomes greed no human value works. No sanskar remains to guide you. In a country where judiciary is under doubt and implementing agencies are much below the mark or highly corrupt, what sanskar are left in that society. Anyway let us do our duty and write the truth.
your this sentence can act as a seed of sanskar and society.
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