दौलत तो दौलत है यारो, दौलत का क्या कहना है। आजजगत में दौलत ही, मानव जाति का गहना है। दौलत ही आज, मानवजीवन का उद्देश्य बन चुका है। लगता है मानवधर्म तो, बिल्कुल आज छन चुका है। हर आसन पर बैठा मानव, दौलत को ही तलाश रहा। दौलत की तुलना में अब, कोई न किसीका खास रहा। रिश्तो में भी हम सभी आज, खोज रहे है दौलत को। जैसे ऊपरवाले को देनी हो, हमें जीने की मोहलत को। दौलत के चक्कर में हम, अब तो जीना ही भूल रहे। इसकी खातिर तो अब हम,सारे रिश्ते भी भूल रहे। पता नहीं हमकोही आज,हम अंधी दौड़ में दौड़ रहे। जन्म दाता को भी हम,दौलत की खातिर छोड़ रहे।
5 comments:
bahut sundar, daulat ka ganda khel chal raha hai
दौलत भी जरुरी है लेकिन रिश्तों से बढ़ कर नहीं ....आपने सही लिखा
dhanyabad ji
vahi to ho raha hai bahan ji. jaruri to aadi kaal se hi thi daulat magar sarvopari nahi thi aaj sarvopari ho rahi hai.
ur poem is just in one word awesome
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