हमारे पूर्वज क्या करते थे,
और हम क्या कर रहे हैं.
कहीं संस्कारों की जड़ों में,
मट्ठा तो नहीं भर रहे हैं.
श्राद्ध करते थे वो मरे हुए,
पूर्वजों की याद में.
मगर हम जिन्दा ही,
पूर्वजों से वृद्धास्रम भर रहे हैं.
पीढ़ी दर पीढ़ी रिश्तों को,
वो रहे चलाते पिछड़े होकर भी.
विकसित हम खून के,
रिश्तों को भी दरकिनार कर रहे हैं.
जोड़ियाँ बनाते थे वो,
बिना देखे भी जन्मभर की.
मगर प्रेम विवाह करके भी,
हम तलाक की अपील रहे हैं.
बिना कानून के भी कोसों सुदूर,
थे अपराध से वो,
और हम कानून की ओट,
में ही अपराध कर रहे हैं.
अशिक्षित होकर भी,
क्याकुछ? नहीं सिखाया हमें,
उच्च शिक्षा के साथ आज हम,
सिर्फ स्वार्थ भर रहे हैं.
मरते थे वो देश,
समाज और सम्मान की खातिर,
मगर हम आज सिर्फ स्वार्थ,
पैसे के लिए मर रहे हैं.
कंही संस्कारों की जड़ो में,
मट्ठा तो नहीं भर रहे हैं.
और हम क्या कर रहे हैं.
कहीं संस्कारों की जड़ों में,
मट्ठा तो नहीं भर रहे हैं.
श्राद्ध करते थे वो मरे हुए,
पूर्वजों की याद में.
मगर हम जिन्दा ही,
पूर्वजों से वृद्धास्रम भर रहे हैं.
पीढ़ी दर पीढ़ी रिश्तों को,
वो रहे चलाते पिछड़े होकर भी.
विकसित हम खून के,
रिश्तों को भी दरकिनार कर रहे हैं.
जोड़ियाँ बनाते थे वो,
बिना देखे भी जन्मभर की.
मगर प्रेम विवाह करके भी,
हम तलाक की अपील रहे हैं.
बिना कानून के भी कोसों सुदूर,
थे अपराध से वो,
और हम कानून की ओट,
में ही अपराध कर रहे हैं.
अशिक्षित होकर भी,
क्याकुछ? नहीं सिखाया हमें,
उच्च शिक्षा के साथ आज हम,
सिर्फ स्वार्थ भर रहे हैं.
मरते थे वो देश,
समाज और सम्मान की खातिर,
मगर हम आज सिर्फ स्वार्थ,
पैसे के लिए मर रहे हैं.
कंही संस्कारों की जड़ो में,
मट्ठा तो नहीं भर रहे हैं.
1 comment:
आज हम सिर्फ स्वार्थ भर रहे हैं,संस्कारों की जड़ों में मट्ठा भर रहे हैं.
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