व्यापार
अगर जीवन में कोई सच्चा मित्र मिल जाता है।
ता-उम्र कोई भी मित्र का कर्ज नहीं चुका पाता है।
अजीव रिश्ता है जो जीव-जंतुओ में भी पाया जाता है।
पर आज इस रिश्ते को हर कोई नहीं निभा पाता है।
मित्रता तभी सार्थक है जब मित्र के लिए जीना चाहोगे।
अपनी हर मुश्किल में फिर उसे भी साथ में पाओगे।
दुनिया के सारे रिश्तों को आज दौलत ही खा रही है।
वही दौलत मित्रता को भी आज बट्टा लगाना चाह रही है।
मगर रिश्तो की कीमत भी दौलत में नहीं हो सकती।
हमें कोई भी रिश्ता कितनी भी दौलत नहीं दे सकती।
दौलत की खातिर गर कोई रिश्ता बनाया भी जाता है।
वो निश्चित ही दौलत के साथ ही ख़त्म हो जाता है।
दौलत की खातिर मानव नित नए रिश्ते तो बनता है।
मानव ही वो जीव है जो रिश्तो को सबसे कम निभाता है।
माँ और मित्र का रिश्ता तो पशु-पक्षियों में भी होता है।
वो मित्र की खातिर देखा गया जान को भी खोता है।
मगर मानव मित्रता को भी आज नकार रहा है।
मौका मिलते ही मित्रता की कीमत डकार रहा है।
दौलत की अभिलाषा तो इस दुनियां में अनन्त है।
इसकी खातिर रिश्तो का फिर क्यों करें हम अंत है।
सारी दौलत के बदले भी यदि रिश्ते बरकरार रहते हैं।
तो भी लाभ का ही सौदा है ये आपसे हम कहते हैं।
1 comment:
avashya saxena ji dhanyabad.
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