कोमलता से कठोरता हमेशा से ही हारती आई है।
भले ही क्षणिक विजय कठोरता ने दिखलाई है।
कठोरता ने तो वैसे हरदम ही मुंह की खाई है।
अंततः कोमलता ही हर बाजी मारती आई है।
नम्रता से कठोर क्रोध हरदम ही हारजाता है।
अंततः नम्रता के सामने घुटने टेक गिडगिडाता है।
काँटों की कठोरता ही बागड़ में चौकीदार बनाती है।
फूलों की कोमलता ही है जो सुर मस्तक पर चढ़वाती है।
शिशुओ की कोमलता ही उनको हर गोदी में बिठवाती है।
जीवन की कठोरता ही है जो चुपके वृद्धावस्था ले आती है।
मादा तो नियति में हमेशा कोमलता की प्रतिमूर्ति रही है।
प्रकृति तो हर वक्त मादा वर्ग से ही स्वस्फूर्ति रही है।
मादा ही नियति को हरदम आगे बढ़ाती आई है।
जीव जंतु या फिर हो मानव नस्ल बचाती आई है।
प्रथम निबाला हर नवजात को मादा से ही मिलता आया है।
मादा की कोमलता से ही स्रष्टि का हर फूल खिलता आया है।
पर मानव समाज में मादा का महत्व कम ही होता जा रहा है।
जानकर भी इसका महत्व मानव समाज कठोर होता जा रहा है।
अपना बजूद खोकर समाज एकदिन जरूर होश में आएगा।
महाशक्ति के आगे षाष्टान्ग होकर फिर से वो गिडगिडायेगा।
भले ही क्षणिक विजय कठोरता ने दिखलाई है।
कठोरता ने तो वैसे हरदम ही मुंह की खाई है।
अंततः कोमलता ही हर बाजी मारती आई है।
नम्रता से कठोर क्रोध हरदम ही हारजाता है।
अंततः नम्रता के सामने घुटने टेक गिडगिडाता है।
काँटों की कठोरता ही बागड़ में चौकीदार बनाती है।
फूलों की कोमलता ही है जो सुर मस्तक पर चढ़वाती है।
शिशुओ की कोमलता ही उनको हर गोदी में बिठवाती है।
जीवन की कठोरता ही है जो चुपके वृद्धावस्था ले आती है।
मादा तो नियति में हमेशा कोमलता की प्रतिमूर्ति रही है।
प्रकृति तो हर वक्त मादा वर्ग से ही स्वस्फूर्ति रही है।
मादा ही नियति को हरदम आगे बढ़ाती आई है।
जीव जंतु या फिर हो मानव नस्ल बचाती आई है।
प्रथम निबाला हर नवजात को मादा से ही मिलता आया है।
मादा की कोमलता से ही स्रष्टि का हर फूल खिलता आया है।
पर मानव समाज में मादा का महत्व कम ही होता जा रहा है।
जानकर भी इसका महत्व मानव समाज कठोर होता जा रहा है।
अपना बजूद खोकर समाज एकदिन जरूर होश में आएगा।
महाशक्ति के आगे षाष्टान्ग होकर फिर से वो गिडगिडायेगा।
5 comments:
अतिसुन्दर!!
बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति...
dhanyabad
वाह . बहुत उम्दा,
वाह ... बेहतरीन प्रस्तुति
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