हम भारत के रहने वाले ही,भारत को ही है बिगाड़ रहे।
नकल कर रहे है औरौ की,अपनी संस्कृति को गाड़ रहे।
छोटे छोटे देश भी अपनी,कम से कम पहचान बचाए हैं।
हम विकास के नाम परअपने, संस्कार हीतो मिटापाए हैं।
बोलचाल,तहजीब अरु पहनावा,सब कुछ औरौ से सीख रहे।
जगतगुरु था भारत पहले,पर हम अबऔरौ के चेला दीख रहे।
नई पीढ़ी को हम रिश्तों का भी,बदला स्वरूप है दिखा रहे।
पूजनीय माताजी को भी,बच्चों को मम्मा कहना सिखा रहे।
यंहा गाय देखकर बच्चेअब ,काऊ काऊ कह चिल्लाते है।
चाचा चाची,मामा मामी को ,अंकल आंटी आज बुलाते है।
माँ बाप नाज करते है अब,बच्चा कुत्ते को यदि डोंगी कहता है।
दादाजी का चरण स्पर्श छोड़,यदि उनको भी टाटा कहता है।
भाषा का ज्ञान भले हो न उन्हें,पर संस्कार तो मिटाना ही है।
वैसे आजाद हम हो गए भले,सांस्कृतिक गुलामी तो लाना ही है।
माताजी को माँ कहकर क्या,हम अच्छी शिक्षा नहीं पा सकते।
दादाजी का कर चरणस्पर्श,क्या हम विदेश को नहीं जा सकते।
नकल कर रहे है औरौ की,अपनी संस्कृति को गाड़ रहे।
छोटे छोटे देश भी अपनी,कम से कम पहचान बचाए हैं।
हम विकास के नाम परअपने, संस्कार हीतो मिटापाए हैं।
बोलचाल,तहजीब अरु पहनावा,सब कुछ औरौ से सीख रहे।
जगतगुरु था भारत पहले,पर हम अबऔरौ के चेला दीख रहे।
नई पीढ़ी को हम रिश्तों का भी,बदला स्वरूप है दिखा रहे।
पूजनीय माताजी को भी,बच्चों को मम्मा कहना सिखा रहे।
यंहा गाय देखकर बच्चेअब ,काऊ काऊ कह चिल्लाते है।
चाचा चाची,मामा मामी को ,अंकल आंटी आज बुलाते है।
माँ बाप नाज करते है अब,बच्चा कुत्ते को यदि डोंगी कहता है।
दादाजी का चरण स्पर्श छोड़,यदि उनको भी टाटा कहता है।
भाषा का ज्ञान भले हो न उन्हें,पर संस्कार तो मिटाना ही है।
वैसे आजाद हम हो गए भले,सांस्कृतिक गुलामी तो लाना ही है।
माताजी को माँ कहकर क्या,हम अच्छी शिक्षा नहीं पा सकते।
दादाजी का कर चरणस्पर्श,क्या हम विदेश को नहीं जा सकते।
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