Friday 2 May 2014

नहले पर दहला

अब पुरुष यंहा ना पुरुष रहा,ना महिला ही अब महिला है।
अब तो दोनों ही एक दूजे के,बेशक नहले पर ही दहला है।
पौरुष भी अब हो चुका ख़त्म,बीबी की कमाई खा खा कर।
बाहर तो कुछ दिखला न सकें,पौरुष दिखलाते घर आकर।
बीबी अब महिला बनकर यदि,शालीनता से रहना भी चाहे।
पौरुष हीन आधुनिक पुरुष भी,उसको नहीं निभाना चाहे।
मार मार बेहूदे ताने उसको,जीना उसका दूभर कर देते है।
कैसे भी पैसे लेकर वो आये,तो सिर आँखों पर धर लेते है।
महल छोड़कर महिला भी,सड़कों पर ही आज विचरती है।
अपने ही बच्चों की परवरिश से,मानो जैसे वो अब डरती है।
बच्चों को नौकर लगा भले,खुद को तो चाकरी ही करनी है।
निरंकुश जीवन जीने वाली,अब ममता की खाली वरनी है।
ये हाल है उस आबादी का, जो ममता की छाँव के पौधे है।
अब के नौनिहालौ को मिले, ममता के नाम पर औहदे है।

         

No comments: